भारतवर्ष में साक्षरता एवं शिक्षा के विस्तार एवं विकास के लिए पिछले कई दशकों से लगातार कोशिशेें की जाती रही हैं। कितने ही अभियानों, परियोजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षित एवं साक्षर पीढ़ी के निर्माण की पहल हुई है। इसी दिशा में अब चलाया जा रहा साक्षर भारत मिशन कार्यक्रम तालीम से तीव्र विकास की दशा और दिशा तय करने वाला सिद्ध होगा।
वंचितों के लिए शिक्षा का सुअवसर
इसका शुभारम्भ भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सन् 2009 में अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 8 सितम्बर को किया। इस कार्यक्रम का उद्देेश्य उन वयस्कों ख़ासकर स्ति्रयों को शिक्षा उपलब्ध कराना है, जिन्होंने नियमित शिक्षा के अवसर खो दिये हैं तथा जो विद्यालय नहीं जा पाये हैं एवं जिनकी आयु ऎसी शिक्षा प्राप्त करने से ज्यादा हो गई है जो अब साक्षरता, बुनियादी शिक्षा आदि प्राप्त करने की आवश्यकता अनुभव करते हैं।
समयबद्ध तरीके से 15 से अधिक आयु वर्ग के निरक्षरों को सार्वजनिक साक्षरता प्रदान करने के लिए वर्ष 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन आरम्भ किया गया तथा इसे नवीं व दसवी पंचवर्षीय योजना में भी जारी रखा गया था। दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंत (मार्च 2007) में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अन्तर्गत सम्पूर्ण साक्षरता अभियान उतर साक्षरता तथा सतत शिक्षा कार्यक्रम को प्रभावी रूप चलाया गया जिसके परिणाम स्वरूप 127.45 मिलियन लोग साक्षर किये गये जिसमें 60 प्रतिशत शिक्षार्थी स्ति्रयां थी जबकि 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति व 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के शिक्षार्थी थे।
निरक्षरों के जीवन में रोशनी लाने का अभियान
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की महत्त्वपूर्ण सफलता के बावजूद निरक्षरता राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई है। वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर देश में निरक्षर वयस्कों की संख्या 259.52 मिलियन है। हालांकि प्राथमिक शिक्षा में निवेश अधिक होने व जनसंख्या वृद्धि की दर कम होने के कारण यह आशा की जाती है कि निरक्षरों की संख्या में अब अधिक वृद्धि नहीं होगी लेकिन निरक्षरों की संख्या में वृद्धि से इनकार भी नहीं किया जा सकता क्योंकि हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने का अनुपात भी बढ़ा है।
साक्षरता में लैगिक, सामाजिक तथा क्षेत्रीय असमानता अभी तक विद्यमान है। नियमित विद्यालयी शिक्षा के जरिये साक्षरता का स्तर बनाये रखने और उसे बढ़ाने के प्रयासों के पूरक के रूप में प्रौढ़ शिक्षा अपरिहार्य है। इसलिये राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को ग्यारहवीं योजना की अवधि में जारी रखना आवश्यक समझा गया इसी दौरान भारत सरकार ने घोषणा की कि स्त्री की स्वंतत्रता और उसे सशक्त बनाने के लिये साक्षरता एक प्रमुख कार्यक्रम है।
सामाजिक कल्याण को मिलेगा संबल
आशा की जानी चाहिए कि महिला साक्षरता बढ़ने से अन्य सभी सामाजिक विकास के कार्यक्रमों के विस्तार को संबल और गति मिलेगी। हालांकि यह केवल महिला साक्षरता का भौतिक पहलू है। इसका आत्मिक पहलू यह है कि इससे भारतीय नारी में आलोचनात्मक चेतना का विकास होगा जिससे वह उस वातावरण पर अपना नियंत्रण कर सकेगी जहां उसे वर्ग जाति और लिंग के आधार पर कई अभावों और कमियों का सामना करना पड़ता है।
स्त्री को सशक्त बनाने की सरकार की नीति के संदर्भ में यह आवश्यक समझा गया कि राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को कार्यक्रमों के रूप में इस तरह पुनर्निर्धारित किया जाये ताकि महिला साक्षरता दर को बढाया जा सके एवं मिशन में इस तरह के परिवर्तन करने से साक्षरता अभियान को पुनः ऊर्जावान करने पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पडेगा।
जमीनी हकीकत से जुड़ा है कार्यक्रम
साक्षरता मिशन का पुनर्निर्धारण करने की दृष्टि से देश भर में परामर्श किया गया तथा सितम्बर 2009 में भारत के सभी राज्यों के शिक्षा सचिवों से चर्चा की गई। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण की परिषद ने भी इस पर विचार किया। देश भर में हुए परामर्श, चर्चाओं, बैठकों के दौरान सबंधित पक्षों द्वारा जो आम राय व्यक्त की गई वह यह रही कि मिशन के जमीनी स्तर पर बडे़ पैमाने पर आये बदलाव के कारण महिला साक्षरता की बढी मांग को ध्यान में रखते हुए महिला साक्षरता व इसकी अहमियत पर विशेष ध्यान देना होगा।
इसी पृष्ठभूमि में ’साक्षर भारत मिशन ’के रूप में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का नया स्वरूप सामने आया है। साक्षर भारत मिशन कार्यक्रम में 15वर्ष आयु तथा इससे अधिक उम्र के सभी वयस्क शामिल हैं। हालांकि खास जोर महिला वर्ग पर है। इस योजना में पिछली खामियों को न केवल दूर कर दिया गया है बल्कि कई नई बातें भी समाविष्ट की गई है।
बुनियादी साक्षरता उतर साक्षरता तथा सतत शिक्षा कार्यक्रम अब श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम के स्थान पर सतत रूप सेे साथ साथ संचालित हो रही है। साक्षर भारत मिशन के सभी कार्यक्रमों के प्रबंधन तथा समन्वयन के लिये लोक शिक्षा केन्द्र स्थापित किये गये हैं।